बढ़ते घाव
सच खंजर लेकर, झूठ सा रहा
गूंगा सब कुछ कड़वा बोल गया
ललकार हमारा चुप सा रहा
कौन है दाता, किसकी दुनिया
क्यों अधीन है, सबकी खुशियाँ
किस अपंग के इस पर पहरे हैं
दूरबीन लगा कर देख ज़रा
ज़ख्म ये कितने गहरे हैं !
अख़बार तुम्हें निर्वस्त्र किया तो
शिलालेख लिखवाये ख़ुद की
जो मूल कभी दिया नहीं था
फिर भी मांग लगायी सूद की
कैसे हो दाता, किस जहान के
शमशान हुए हैं, शान यहाँ के
सब लोग ध्रुवतारे से ठहरे हैं
दूरबीन लगा कर देख ज़रा
ज़ख्म ये कितने गहरे हैं !
गर कोई परिंदा पर मारे
विरूद्ध तेरे हवा की
होगा क़ैद, अपाहिज़ बनकर
मान घटेगा पिजड़े की
ये जो चमकीले है संगमरमर
पल में तू कर दे खंडहर
हाए ! कितनी ग़ुलाम ये शहरें है
दूरबीन लगा कर देख ज़रा
ज़ख्म ये कितने गहरे हैं !
ज़हर भर दे तू जहन में
गर कोई खुशबू बिखेरे, तेरे जग में
मेहंदी का पैगाम जो लाये
बारूद तू भर दे रग-रग में
बम फुट गया, सब लूट गया
साहस ये बोलकर रुठ गया
क्या लोग यहाँ के बहरे हैं
दूरबीन लगा कर देख ज़रा
ज़ख्म ये कितने गहरे हैं !
Author :
Dhananjay Kushwaha
3rd Year, History Hons. KMC
👏👏
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