AIMING HIGH AND MANAGING LIFE
अपने संबोधन में महोदय ने विभिन्न विषयों पर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, आरंभ में ही जीवन को अप्रत्याशित बताकर आगे के पड़ाव में आने वाले संघर्षों और चुनौतियों से अवगत कराया।
बकौल श्री शर्मा ने सफलता के लिए किए जाने वाले संकल्प का कोई विकल्प नहीं है, और संघर्षों के अतिरिक्त भी कई प्रभावी कारक ऐसे होते हैं जो हमारे चरित्र निर्माण में व व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं वह हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। सफलता सिर्फ हमारे दृढ़ संकल्पित और अथक परिश्रम का ही नहीं बल्कि इन प्रभावी घटकों के द्वारा हमें मिलने वाली प्रेरणा और सीख के भी योगदान को रेखांकित करती है। सिर्फ अध्ययन तक सीमित रह जाना हमारे चरित्र निर्माण में ना तो सहायक होता है और ना ही लक्ष्य प्राप्ति में विशेष योगदान देता है अपितु यह एक प्रकार की बाधा है जो हमें विभिन्न चीजों के सीखने से वंचित रखती है। व्यक्ति को जीवन में स्वयं के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए अपितु अपनी गलतियों के विश्लेषण से उनमें सुधार कर सीखने की प्रबल भावना को सदैव ही जीवित रखना चाहिए। हमें अपने आरामदायक क्षेत्र से बाहर आकर संघर्षों से मुकाबला करना चाहिए और उचित समय प्रबंधन से अपने लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में बढ़ना चाहिए।
इसके अतिरिक्त श्री शर्मा ने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर मुखरता से विचार रखे व इनकी आवश्यकताओं को रेखांकित किया इसके निहितार्थ उन्होंने संस्कृत की एक प्रसिद्ध सूक्ति का भी उदाहरण दिया।
“शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्”
अर्थात शरीर बस एक माध्यम भर है जिसे पीड़ा और सुख दोनों की अनुभूति होती है जिससे होकर ही हमारी आत्मा आप्यायित होती है।
महोदय के वक्तव्य के पश्चात प्रश्नोत्तरी चरण के लिए सदन में श्रोताओं से प्रश्न लिए गए जिनका महोदय ने बहुत ही विनम्रता के साथ उत्तर दिया कई प्रश्न उनके व्यक्तिगत जीवन, प्राइवेट सेक्टर से सिविल सर्विसेज में आने के कारणों, सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए आवश्यक पाठ्य सामग्रियों व वैकल्पिक विषयों के चुनाव तथा प्रशासन का समाज के प्रति रवैया और अनुशासनात्मक कार्रवाई से संदर्भित रहे।
इसी बीच मुख्य अतिथि जी के पिता पूज्य श्री जितेंद्र शर्मा जी भी पूरे कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहे परंतु तकनीकी खामियों के चलते वह श्रोताओं को संबोधित नहीं कर सके। मुख्य अतिथि जी के लिए धन्यवाद ज्ञापन संदेश विभाग के HoD द्वारा भेजा गया जिनको अपनी व्यस्तताओं के चलते कार्यक्रम को मध्य में ही छोड़ना पड़ा परंतु तृतीय वर्ष के छात्र ज्योतिर्मोय ने स्क्रीन प्रजेंट करके महोदय का धन्यवाद ज्ञापन किया एवं कार्यक्रम के अंत में संचालक मुक्ता ने सभी उपस्थित अतिथिगण, गुरुजनों, श्रोताओं व विद्यार्थियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम के समापन की औपचारिक घोषणा की। पूरे कार्यक्रम के दौरान श्रोताओं की संख्या 113 रही जिसमें की विभाग के प्रोफेसर भी सम्मिलित रहे।
____________________________________________________
लेखक
चर्चित गंगवार
इतिहास प्रतिष्ठा तृतीय वर्ष
किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
Comments
Post a Comment